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मम श्रीबटुकभैरवप्रसादसिद्धयर्थे जपे विनियोगः ॥
ದೀಪ್ತಾಕಾರಂ ವಿಶದವದನಂ ಸುಪ್ರಸನ್ನಂ ತ್ರಿನೇತ್ರಂ
जलमध्येऽग्निमध्ये वा दुर्ग्रहे शत्रुसङ्कटे ॥ २४॥
अनुष्टुप् छन्दः । श्रीबटुकभैरवो देवता ।
साधक कुबेर के जीवन की तरह जीता है और हर जगह विजयी होता है। साधक चिंताओं, दुर्घटनाओं और बीमारियों से मुक्त जीवन जीता है।
सद्योजातस्तु मां पायात् सर्वतो देवसेवितः ॥
सर्वपापक्षयं याति ग्रहणे भक्तवत्सले ॥ १२॥
प्रणवः कामदं विद्या लज्जाबीजं च सिद्धिदम् ।
सर्वव्याधिविनिर्मुक्तः वैरिमध्ये विशेषतः ॥ २२॥
शत्रु के द्वारा किये हुए मारण, मोहन, उच्चाटन आदि तंत्र दोष नष्ट होते click here है, उनसें रक्षा होती है।
संहारभैरवः पायादीशान्यां च महेश्वरः
ಸಂಪ್ರಾಪ್ನೋತಿ ಪ್ರಭಾವಂ ವೈ ಕವಚಸ್ಯಾಸ್ಯ ವರ್ಣಿತಮ್